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रविवार, 29 अप्रैल 2018

इनाम

अपनी मेहनत के लिए फिर वही इनाम मिला, काम के बदले मुझे फिर ज़रूरी काम मिला।
जिन्दगी हो गई दिल्ली की सड़क के जैसी, बस अभी जाम से निकले थे फिर से जाम मिला ।।
                         📝-गिरीश सिंह

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

पाक दामन

पाक दामन का दौर कब का ज़मींदोज़ हुआ।
अब तो वो फ़क्र से कहते हैं 'दाग़ अच्छे हैं'।।

बुधवार, 25 अप्रैल 2018

कविता - नया साल


तारीख बदली, साल बदला।
न हम बदले, न हमारा हाल बदला ।।

केलैन्डर बदला, महीना बदला।
हमने जो देखा, कुछ कहीं न बदला ।।

दिन बदला,  काल बदला।
न हालात बदले, न जीने का सवाल बदला ।।

ऋतु बदली, मौसम बदला ।
न रोज़ की भागमभाग, न दौड़ते रहने का ख़याल बदला ।।

कहते हैं ज़माना बदल गया है ।
न इन्सान की फितरत, न बदला लेने का रिवाज़ बदला ।।

हम पर भी तोहमत है कि हम बदल गए हैं।
बाखुदा अपना मिज़ाज न कोई अन्दाज़ बदला ।।

रात भर जश्न मे बेखुद रहे वो लोग ।
फिर वही सुबह थी, कुछ  न सूरत- ए-हाल बदला ।।

तारीख बदली, साल बदला।
न हम बदले, न हमारा हाल बदला

           लेखक   - गिरीश सिंह