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बुधवार, 25 अप्रैल 2018

कविता - नया साल


तारीख बदली, साल बदला।
न हम बदले, न हमारा हाल बदला ।।

केलैन्डर बदला, महीना बदला।
हमने जो देखा, कुछ कहीं न बदला ।।

दिन बदला,  काल बदला।
न हालात बदले, न जीने का सवाल बदला ।।

ऋतु बदली, मौसम बदला ।
न रोज़ की भागमभाग, न दौड़ते रहने का ख़याल बदला ।।

कहते हैं ज़माना बदल गया है ।
न इन्सान की फितरत, न बदला लेने का रिवाज़ बदला ।।

हम पर भी तोहमत है कि हम बदल गए हैं।
बाखुदा अपना मिज़ाज न कोई अन्दाज़ बदला ।।

रात भर जश्न मे बेखुद रहे वो लोग ।
फिर वही सुबह थी, कुछ  न सूरत- ए-हाल बदला ।।

तारीख बदली, साल बदला।
न हम बदले, न हमारा हाल बदला

           लेखक   - गिरीश सिंह 

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